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कौन कहता है पैसे से खुशी नहीं खरीदी जा सकती? जानें क्या कहती है ये रिसर्च

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कौन कहता है पैसे से खुशी नहीं खरीदी जा सकती? जानें क्या कहती है ये रिसर्च

Can money buy happiness? आपने अक्सर लोगों को एक दूसरे को सलाह देते हुए सुना होगा कि व्यक्ति पैसे से सुख-सुविधाएं तो खरीद सकता है लेकिन खुशी नहीं। दार्शनिक, अर्थशास्त्री और सामाजिक वैज्ञानिक भी दशकों से इस सवाल का जवाब तलाश रहे हैं। लेकिन हाल ही में हुई एक रिसर्च ने इस सोच को पूरी तरह झुठला दिया है। जी हां, वैज्ञानिकों का मानना है कि जिन लोगों की आय कम होती है, वे अवसाद की चपेट में जल्दी आते हैं। जबकि अगर आप अपने व्यक्तित्व के अनुसार पैसा खर्च करते हैं, तो इससे आपको खुशी का अहसास होगा। जरूरत के अनुसार पैसा खर्च करने से लाइफस्टाइल भी बेहतर होता है। 

बता दें, इस शोध को करने वाले दो प्रमुख शोधकर्ता, डैनियल काहनमैन और मैथ्यू किलिंग्सवर्थ, इस महीने प्रकाशित एक संयुक्त अध्ययन में नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज की कार्यवाही में इस निष्कर्ष पर पहुंचे, कि जो लोग आम तौर पर अधिक कमाते हैं, वो खुश रहते हैं। ऐसे लोगों की आय $75,000 (60 लाख) से अधिक होती है। 

डैनियल काहनमैन और किलिंग्सवर्थ ने अपने स्टडी में 18 से 65 साल की उम्र के बीच वाले लगभग 33 हजार 391 वयस्कों का सर्वे किया। ये सारे लोग अमेरिका के कामकाजी लोग थे, जिनकी सालाना इनकम $ 10,000 (8 लाख) थी। 

किलिंग्सवर्थ ने प्रतिभागियों के हैप्पीनेस के स्केल को जानने के लिए उन्हें एक स्मार्टफोन ऐप का इस्तेमाल करने के लिए दिया। ये ऐप किलिंग्सवर्थ ने ही खुद तैयार किया था, जिसका नाम ट्रैक योर हैप्पीनेस रखा गया था। इसमें भाग लेने वाले प्रतिभागियों से पूछा गया था कि आप अभी कैसा महसूस कर रहे हैं। जिसके जवाब बहुत खराब से लेकर बहुत अच्छे तक रहे। 

इस स्टडी को करने के बाद शोधकर्ता दो बड़े निष्कर्षों पर पहुंचे। पहला, अधिकांश लोगों के लिए उनकी बढ़ती आय के साथ खुशी बढ़ती है। मतलब कई लोगों के लिए औसत से अधिक पैसा होने से वो ज्यादा खुश रह सकते हैं। लेकिन इस अध्ययन में यह भी पाया गया कि प्रतिभागियों में से लगभग 20 प्रतिशत लोग नाखुश अल्पसंख्यक भी थे, जिनका दुख एक सीमा तक बढ़ती आय के साथ कम होता है, लेकिन फिर आगे कोई प्रगति नहीं दिखाती है।

ऐसे लोग नकारात्मक दुख का अनुभव करते हैं जिसे आम तौर पर अधिक पैसा कमाकर भी कम नहीं किया जा सकता है, उदाहरण के लिए दिल टूटने, शोक या ​​​​अवसाद। ऐसे लोगों के लिए बढ़ती आय उनके दुख कम कर सकती है लेकिन खत्म नहीं। 


किलिंग्सवर्थ ने अपने अध्ययन के बारे में एक बयान देते हुए कहा कि अगर सरल शब्दों में समझा जाए तो ज्यादातर लोगों के लिए उनकी आय में बढ़ोतरी उनकी खुशी का कारण बन सकती है।