10 साल में दूसरी बार किडनी का किया ट्रांसप्लांट, फोर्टिस अस्पताल में हुआ सफल ऑपरेशन

अरुणाचल प्रदेश के एक मरीज का सफल किडनी ट्रांसप्लांट हुआ है। इस बेहद मुश्किल ऑपरेशन को दिल्ली के ओखला स्थित फोर्टिस अस्पताल ने पूरा किया है। डॉक्टरों का कहना है कि ऑपरेशन काफी चुनौतीपूर्ण था क्योंकि मरीज का 10 साल पहले भी गुर्दों का प्रत्यारोपण किया जा चुका है लेकिन, उसे ऑपरेशन के बाद किडनी में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था। जिस वजह से उसे नियमित रूप से डायलिसिस की जरूरत पड़ रही थी।
दिल्ली के फोर्टिस अस्पताल में मरीज को किडनी ट्रांसप्लांट के बाद 8 वें दिन अस्पताल से छुट्टी भी दे दी गई है। हालांकि अभी मरीज की हालत काफी बेहतर है लेकिन, डॉक्टरों का कहना है कि यह ऑपरेशन सामान्य नहीं था। इस बेहद मुश्किल ट्रांसप्लांट को 4 घंटे में पूरा किया गया।
ऑपरेशन की तैयारियों में लगा एक साल का वक्त
मरीज का नाम अरुणाचल प्रदेश के ग्रामीण इलाके में रहने वाला 33 वर्षीय फुन्सु त्सेरिंग है। जिसके गुर्दे का ट्रांसप्लांट किया जाना था। यह बेहद चुनौतीपूर्ण कार्य था। इसमें डॉक्टरों को न सिर्फ डोनर की जरूरत थी, बल्कि ब्लड में मौजूद मल्टीपल और हाई एंटीबॉडीज का पता भी लगाना था। डॉक्टरों को मरीज के ऑपरेशन से पहले तैयारियों में एक साल तक का वक्त लग गया। डॉ. संजीव गुलाटी के नेतृत्व में टीम ने मरीज को सघन निगरानी में रखा और जरूरी टेस्ट किए। इसके बाद मरीज का ऑपरेशन किया गया।
इस मामले की विस्तार से जानकारी देते हुए प्रिंसिपल डॉयरेक्टर डॉ. संजीव गुलाटी ने कहा, "मरीज की 10 साल पहले किडनी ट्रांसप्लांट सर्जरी हो चुकी थी और एंड-स्टेज किडनी डिज़ीज़, जो कि हाइपरटेंशन के चलते पैदा हुई थी, के इलाज के लिए उस वक्त उनकी मां डोनर थी। ट्रांसप्लांट कराने के बाद उन्हें क्रॉनिक एलोग्राफ्ट डिस्फंक्शन की शिकायत हो गई थी। कुछ साल के बाद मरीज़ की किडनी बेकार हो गई और उन्हें फिर से हिमोडायलसिस शुरू करवाना पड़ा। जब हमारे अस्पताल में मरीज़ की जांच की गई तो हमें पता चला कि उनके मामले में हाइ एंटीबॉडी की वजह से यह ट्रांसप्लांट खतरे से खाली नहीं है।"
जिंदा बचने की उम्मीद कम पर नहीं मानी हार
उन्होंने आगे कहा कि इलाज की जटिल प्रक्रिया के तहत् मरीज़ को एंटीबॉडी कम करने के लिए कई इंजेक्शंस और दवाएं दी गईं। प्लाज़्मा थेरेपी के 4 सेशंस के बाद एंटीबडी लैवल्स वापस आ चुके थे और यह पता चला कि उनके शरीर में अब भी एंटीबॉडीज़ की अधिक मात्रा बनी हुई है। उन्हें लौटने के लिए कहा गया लेकिन उन्होंने इससे इंकार कर दिया। एक परेशानी यह भी कि उनके राज्य में डायलसिस भी आसानी से उपलब्ध नहीं है और मरीज़ के बचने की संभावना भी काफी कम थी। इसलिए मरीज़ रिजेक्शन का जोखिम भी लेने को तैयार था। यह देखकर किडनी ट्रांसप्लांट टीम ने आगे की प्रक्रिया शुरू करने का फैसला किया।